दीवार  पर इक कील, उस पर एक धागा
धागे से लटका हिन्दोस्तान सारा
काग़ज़ पर नक्शा है, वहीं सारा देश
काग़ज़ पर उन्नति के सारे प्रतिमान

ये है हमारा अभिमान
काग़ज़ पर बसा पूरा हिन्दोस्तान !

काग़ज़ पर सड़क बनीं, काग़ज़ पर नहरें
काग़ज़ पर बने मकाँ, कहाँ कोई ठहरे ?
काग़ज़ पर बनी इक सुनहरी तस्वीर
काग़ज़ पर देश बना सोने की खान

ये है हमारा अभिमान
काग़ज़ पर बसा पूरा हिन्दोस्तान !

काग़ज़ पर कुँए खुदे, काग़ज़ पर पोखर
काग़ज़ पर बँट गयी, गायों को चोकर
काग़ज़ पर देखो ग़रीबी सब मिट गयी
काग़ज़ पर बढ़ गया सबका सम्मान

ये है हमारा अभिमान
काग़ज़ पर बसा पूरा हिन्दोस्तान !

काग़ज़ पर गाय बँटीं, काग़ज़ पर अन्न
काग़ज़ पर किसान और मजूर सब प्रसन्न
काग़ज़ पर घट रही है बेरोज़गारी
राज्य हर इक काग़ज़ पर बन गया महान

ये है हमारा अभिमान
काग़ज़ पर बसा पूरा हिन्दोस्तान !

काग़ज़ पर योजनाएं, काग़ज़ पर शोध
धागा भी टूट रहा, सहकर यह बोझ
गिरा वही काग़ज़ अब ‘रामू’ के ऊपर
कफ़न का वही देखो कर रहा है काम

ये है हमारा अभिमान
काग़ज़ पर बसा पूरा हिन्दोस्तान !

 

– विकास द्धिवेदी (Vikas Diwvedi)


Vikas is a Guest Writer with us. He is a poet and specialises in Hindi and Urdu poetry.

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